Tuesday 23 October 2012

                                           HAR HAR MAHADEV !
                                             OM NAMH SHIVAY !
                                            JAI BHOLENATH !

Saturday 20 October 2012

                                            JAI BABA MAHAKAL !
                                          JAI BABA MAHAKAL !
                                            JAI BABA MAHAKAL !
                                             JAI MAHAKALI MAA !

Friday 19 October 2012


JAI BABA MAHAKAL !
आलस्य में न पड़े

उत्साह, चुस्त स्वभाव और समय की पाबंदी यह तीन गुण बुद्धि बढ़ाने के
लिए अद्वितीय कहे गये हैं। इनके द्वारा इस प्रकार के अवसर अनायास
ही होते रहते हैं, जिनके कारण ज्ञानभंडार में अपने आप वृद्धि होती है। एक
विद्वान् का कथन है -“क
ोई व्यक्ति छलांग मारकर महापुरुष नहीं बना
जाता, बल्कि उसके और साथी जब आलस में पड़े रहते हैं, तब वह रात
में भी उन्नति के लिये प्रयत्न करता है।

आलसी घोड़े की अपेक्षा उत्साही गधा ज्यादा काम कर लेता है ।
एक दार्शनिक का कथन है – “यदि हम अपनी आयु नहीं बढ़ा सकते तो
जीवन की उन्हीं घड़ियों का सदुपयोग करके बहुत दिन जीने से अधिक काम
कर सकते हैं ।

चींटी के पाँव, पाँव में पायल, पायल में घुंघरू, घुंघरू की आवाज भी वो सुनता है l "परमात्मा" बहरा नहीं है 
9 मृगव्याधश्च सर्पश्च निर्ऋतिश्च महायशा:।
...............अजैकपादिहिर्बुध्न्य: पिनाकी च पश्तप: ॥
...............दहनोऽथेश्वरश्चैव कपाली च महाद्युति:।
...............स्थाणुर्भवश्च भगवान् रूद्रा एकादश स्मृता:॥
.............................................................- आदिपर्व, 66/2-3

10 भव: शर्वों रूद्र: पशुपति रथोग्र सहमहां -
.............स्तथा भीमेशाना यदधतिमिधानाष्टकमिदम्॥

11 शिवेन वचस्त त्वा गिरिशाच्छावदामसि।
.................यथ न: सर्वनिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥

हे गिरीश! हम शान्ति स्तोत्रों से आपकी प्रार्थना करते हैं। आप प्रसन्न हों और यह सारा जगत प्राणिमात्र रोगहीन समृध्द एवं प्रसन्न होवे।
7 आज्ञा चक्रस्मृता काशी या बालाश्रुतिमूर्धनि ।
...............स्वाधिष्ठानं स्मृताकांचि मणिपुरमवन्तिका ॥
...............नाभिदेशे महाकाल स्तन्नाम्ना तत्र वैहर: ॥ 
.............................................- वराहपुराण

नाभि ही योगियों के लिये कुण्डलिनी है । कुण्डलिनी जाग्रत करने की क्रिया योगक्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती है । अत: नाभीस्थल पर स्थित भगवान महाकाल योगियों के लिये सिध्दिप
ीठ है । यहाँ आने वाले आस्थावान यात्रीगण इस सिध्दस्थान पर भगवान की पूजा-अर्चना करके अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

8 नमोऽस्तु रूद्रेभ्यो से पृथिव्यां येषामन्नमिषव: तेभ्योदश
...............प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वा:।
...............तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते
...............स्त्रन्दिुष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्य:॥

रूद्रों की नमन करता हूँ जो पृथ्वी पर स्थित है और उनके बाण अन्न हैं। उन रूद्रों को पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व दिशाओं में हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ । वे रूद्र हमारी रक्षा करें हमारा कल्याण करें।हमारा जिनसे और जिनका हम से द्वेष भाव है, उन्हें हम इन रूद्रों के मुख में रखते हैं।

Thursday 18 October 2012

5 कालचक्रप्रवर्तको महाकाल: प्रतापन:।
.............................................- वराहपुराण

(कालचक्र के प्रवर्तक प्रतापी महाकाल को नमन है।)

6 सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्री शैले मल्लिकार्जुनम् ।
...............उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ॥
...............केदारे हिगवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
...............वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बंक गौतमी तटे ।
...............वै
द्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने ।
...............सेतुबन्धे च रामेशं घृष्णेशंच शिवालये ।
................एतानि ज्योतिर्लिंगानि प्रातरुत्थाय य: पठेत् ।
................जन्मान्तर कृत पापं स्मरणेन विनश्यति ॥

(सौराष्ट्र में सोमनाथ (1), श्री शैल पर मल्लिकार्जुन (2) उज्जैन में महाकाल (3), डाकिनी में भीमशंकर (4), परली में वैद्यनाथ (5), ओंकार में ममलेश्वर (6), सेतुबन्ध पर रामेश्वर (7), दारुकावन में नागेश (8), वाराणसी में विश्वनाथ (9), गोमती तट पर त्र्ययम्बक (10), हिमालय में केदार (11), और शिवालय में घृष्णेश्वर (12) का नित्य प्रात: उठकर स्मरण करें तो जन्मान्तर के संग्रहित पापों का नाश हो जाता है।)
शिव की महिमा अनंत है। उनके रूप, रंग और गुण अनन्य हैं। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं। JAI BABA MAHAKAL !                                                                                                    1 भूमंडालाधीश विश्ववन्द्य
..................ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर
.... ..सुष्टारोपिप्रजानांप्रबलभव भयाद्यंनमस्यन्ति देवा।
.......योह्यव्यक्ते प्रविष्ठ: प्रणिहित मनसा धयानायुक्तात्मनांय:।
.......लोकानामादिदेव: सजयतु भगवान् श्री महाकालनामा।
.......विभ्राण: स्तेमलेखामहिवलययुतंव्यक्तलिंगंकपालम्॥ 
....................................................स्कन्दपुराण अवन्तीखण्ड 5-
39-3

(प्रजा व सुष्टि के कारणरुप, भय-विनाशक, देवाराधित ध्यानस्थ महात्माओं के अव्यक्त हृदय में एकाग्ररुप से विराजित सोमलेखा कपाल और अहिवलय से मंडित आदिदेव ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की जय-जयकार से पुनीत अवन्तिका नगरी युग-युग में सुनती चली आ रही है । अत्यंत श्रध्दा विगलित हो धार्मिक जन-मेदिनी अपने पापों व पुण्यों को जिसे समर्पित कर मुक्ति का मार्ग खोलती रही है। उस देवाधिदेव महाकाल का यशोगान करना और उसके प्रति भक्तिभावसे श्रध्दासहित नमन करना कौन नहीं चाहेगा ?)

2 आकाशे तारकं लिंग पाताले हाटकेश्वरम्।
...............मृत्युलोके महाकालं लिंगत्रयं नमोस्तुऽते॥
........................................................................- वराहपुराण
3 क्रीड़ाकुण्डलितोरंगश्वरतनूकारादिरुढाम्वरा।
.............नुस्वारं कलयन्नकारकचिराकारः क्ृपार्द्रप्रभुः॥।
.............विष्णोर्विश्वतनोरवन्तिनगरी हृत्पुण्रीकेवसन्‌ ।
............ओंकाराक्षर मूत्तिरस्यतु सदा कालोन्तकालो सताम्‌ ॥
.......................................महाकाल मन्दिर स्थित उदयादित्य के शिलालेख से

(क्रीड़ित एवं कुण्डविक्त सर्प से विनिर्मित अहिवलय तथा कुंडलिनी चक्र 'ऊ' आरम्भ मे
 रखकर अम्बर (आकाश) को अनुस्वार कल्पना करते हुए 'अ' रचिकृत वर्ण विष्णुदेवत्व के सम्मुख रखद्ध ओम प्रणवाकार स्वरुप से श्री शंकर क्ृपार्द्र हो जहाँ विष्णु के विराट में (विश्वतनु) अवन्तिनगरी हृद्गत पुण्डरीक (अष्टदल कमल) के केन्द्र में कमलदलों में भ्रमणशील 'प्राण' के द्वारा प्राणाणुओं से प्रदक्षिणा प्राप्त श्री महाकाल (नाभिदेशे महाकाल) प्रणवमूर्ति हो परावाणी अवन्ति में विराजमान प्रभु सज्जनों के अन्तकाल को निरस्त करते रहे।)



4 ऊँ महाकाल महाकाय, महाकाल जगत्पते।
...........महाकाल महायोगिन्‌ महाकाल नमोऽस्तुते॥
..................................- महाकाल स्त्रोत
(महाकाय, जगत्पति, महायोगी महाकाल को नमन)

(जो भगवान् शिव आकाश में तारक, पाताल में हाटकेश्वर एवं मृत्युलोक में महाकाल बनकर विराजते हैं, उन्हें हम नमन करते हैं।)            
JAI BABA MAHAKAL! श्री शिव चालीसा
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

Monday 15 October 2012

JAI BABA MAHAKAL !                                            सृष्टि और संहार के अधिपति भगवान शिव 


शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस
्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है, लेकिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कही गई है। इस दिन शिवोपासना भुक्ति एवं मुक्ति दोनों देने वाली मानी गई है, क्योंकि इसी दिन अर्धरात्रि के समय भगवान शिव लिंगरूप में प्रकट हुए थे।

माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि ।
शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ: ।।

भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए। कुछ विद्वान प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में ग्रहण करते हैं। नारद संहिता में आया है कि जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी कही गई है।

ईशान संहिता के अनुसार इस दिन ज्योतिर्लिग का प्रादुर्भाव हुआ, जिससे शक्तिस्वरूपा पार्वती ने मानवी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त किया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कारण है कि इस दिन क्षीण चंद्रमा के माध्यम से पृथ्वी पर अलौकिक लयात्मक शक्तियां आती हैं, जो जीवनीशक्ति में वृद्धि करती हैं। यद्यपि चतुर्दशी का चंद्रमा क्षीण रहता है, लेकिन शिवस्वरूप महामृत्युंजय दिव्यपुंज महाकाल आसुरी शक्तियों का नाश कर देते हैं। मारक या अनिष्ट की आशंका में महामृत्युंजय शिव की आराधना ग्रहयोगों के आधार पर बताई जाती है। बारह राशियां, बारह ज्योतिर्लिगोंे की आराधना या दर्शन मात्र से सकारात्मक फलदायिनी हो जाती है।

यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।
                                                                                
JAI BABA MAHAKAL !

Monday 8 October 2012


jai baba mahakal   !
Somvaar Vrat Katha
पहले समय में किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था. दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था. नगर के सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे. इतना सब कुछ से संपन्न होने के बाद भी वह व्यापारी बहुत दुखी
 था, क्योंकि उसका कोई पुत्र नहीं था. जिस कारण अपने मृत्यु के पश्चात् व्यापार के उत्तराधिकारी की चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी.
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से व्यापरी प्रत्येक सोमवार भगवान् शिव की व्रत-पूजा कि या करता था और शाम के समय शिव मंदिर में जाकर शिवजी के सामने घी का दीपक जलाया करता था. उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया. भगवान शिव बोले- इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है. जो प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है.
शिवजी द्वारा समझाने के बावजूद मां पार्वती नहीं मानी और उस व्यापारी की मनोकामना पूर्ति हेतु वे शिवजी से बार-बार अनुरोध करती रही. अंततः माता के आग्रह को देखकर भगवान भोलेनाथ को उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का वरदान देना पड़ा. वरदान देने के पश्चात् भोलेनाथ मां पार्वती से बोले- आपके आग्रह पर मैंने पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परन्तु इसका यह पुत्र 16 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगा. उसी रात भगवान शिव उस व्यापारी के स्वप्न में आए और उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भी बात बताई.
भगवान के वरदान से व्यापारी को ख़ुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस ख़ुशी को नष्ट कर दिया. व्यापारी पहले की तरह सोमवार के दिन भगवान शिव का विधिवत व्रत करता रहा. कुछ महीनों के बाद उसके घर अति सुन्दर बालक जन्म लिया, घर में खुशियां भर गई. बहुत धूमधाम से पुत्र जन्म का समारोह मनाया गया परन्तु व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक ख़ुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था. जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए वाराणसी भेज दिया. लड़का अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु चल दिया. रास्ते में जहां भी मामा-भांजा विश्राम हेतु रुकते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते.
लम्बी यात्रा के बाद मामा और भांजा एक नगर में पहुंचे. उस दिन नगर के राजा की कन्या का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था. निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था. उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे. इससे उसकी बदनामी भी होगी. जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया. उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा.
वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सम्बन्ध में बात की. मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली. लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया. शादी के बाद लड़का जब राजकुमारी से साथ लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया- राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए जा रहा हूं और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है.
जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया. राजा सब बातें जानकार राजकुमारी को महल में रख लिया. उधर लड़का अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया और गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया. जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो उसने यज्ञ किया. यज्ञ के समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए. रात को वह अपने शयनकक्ष में सो गया. शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही उसके प्राण-पखेड़ू उड़ गए. सूर्योदय पर मामा मृत भांजे को देखकर रोने-पीटने लगा. आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे.
लड़के के मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती भी सुने. पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे. आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें. भगवान शिव ने पार्वती के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर देखा तो भोलेनाथ पार्वती से बोले- यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था. इसकी आयु पूरी हो गई है. मां पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया. माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा.
शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. उस नगर में भी यज्ञ का आयोजन किया. समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा और उसने तुरंत ही लड़के और उसके मामा को पहचान लिया. यज्ञ के समाप्त होने पर राजा मामा और लड़के को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा-धन, वस्त्र आदि देकर राजकुमारी के साथ विदा कर दिया.
इधर भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे परन्तु जैसे ही उसने बेटे के जीवित वापस लौटने का समाचार सुना तो वह बहुत प्रसन्न हुआ. वह अपने पत्नी और मित्रो के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा. अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी को देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. पुत्र की लम्बी आयु जानकार व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ.
सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं. शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.

Tuesday 2 October 2012

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।
यह दस अवतार इस प्रकार है जो मानव को सभी इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं-
1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का महाकाल स्वरुप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला परम कल्याणी हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं।
2. तार- शिव के द
स प्रमुख अवतारों में दूसरा अवतार तार नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का तार स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।
3. बाल भुवनेश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बाल भुवनेश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना जाता हैं।
4.षोडश श्रीविद्येश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार षोडश श्रीविद्येश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का षोडश श्रीविद्येश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता हैं।
5. भैरव- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पांचवा अवतार भैरव नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का भैरव स्वरुप अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।
6. छिन्नमस्तक- शिव के दस प्रमुख अवतारों में छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का छिन्नमस्तक स्वरुप अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।
7. धूमवान- शिव के दस प्रमुख अवतारों में सातवां अवतार धूमवान नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का धूमवान स्वरुप अपने भक्तों की सभी प्रकार से श्रेष्ठ फल देने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।
8. बगलामुख- शिव के दस प्रमुख अवतारों में आठवां अवतार बगलामुख नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बगलामुख स्वरुप अपने भक्तों को परम आनंद प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता हैं।
9. मातंग- शिव के दस प्रमुख अवतारों में नौवां अवतार मातंग के नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का मातंग स्वरुप अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता हैं।
10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का कमल स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता हैं।
विद्वानो के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।