Thursday 18 October 2012

शिव की महिमा अनंत है। उनके रूप, रंग और गुण अनन्य हैं। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं। JAI BABA MAHAKAL !                                                                                                    1 भूमंडालाधीश विश्ववन्द्य
..................ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर
.... ..सुष्टारोपिप्रजानांप्रबलभव भयाद्यंनमस्यन्ति देवा।
.......योह्यव्यक्ते प्रविष्ठ: प्रणिहित मनसा धयानायुक्तात्मनांय:।
.......लोकानामादिदेव: सजयतु भगवान् श्री महाकालनामा।
.......विभ्राण: स्तेमलेखामहिवलययुतंव्यक्तलिंगंकपालम्॥ 
....................................................स्कन्दपुराण अवन्तीखण्ड 5-
39-3

(प्रजा व सुष्टि के कारणरुप, भय-विनाशक, देवाराधित ध्यानस्थ महात्माओं के अव्यक्त हृदय में एकाग्ररुप से विराजित सोमलेखा कपाल और अहिवलय से मंडित आदिदेव ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की जय-जयकार से पुनीत अवन्तिका नगरी युग-युग में सुनती चली आ रही है । अत्यंत श्रध्दा विगलित हो धार्मिक जन-मेदिनी अपने पापों व पुण्यों को जिसे समर्पित कर मुक्ति का मार्ग खोलती रही है। उस देवाधिदेव महाकाल का यशोगान करना और उसके प्रति भक्तिभावसे श्रध्दासहित नमन करना कौन नहीं चाहेगा ?)

2 आकाशे तारकं लिंग पाताले हाटकेश्वरम्।
...............मृत्युलोके महाकालं लिंगत्रयं नमोस्तुऽते॥
........................................................................- वराहपुराण
3 क्रीड़ाकुण्डलितोरंगश्वरतनूकारादिरुढाम्वरा।
.............नुस्वारं कलयन्नकारकचिराकारः क्ृपार्द्रप्रभुः॥।
.............विष्णोर्विश्वतनोरवन्तिनगरी हृत्पुण्रीकेवसन्‌ ।
............ओंकाराक्षर मूत्तिरस्यतु सदा कालोन्तकालो सताम्‌ ॥
.......................................महाकाल मन्दिर स्थित उदयादित्य के शिलालेख से

(क्रीड़ित एवं कुण्डविक्त सर्प से विनिर्मित अहिवलय तथा कुंडलिनी चक्र 'ऊ' आरम्भ मे
 रखकर अम्बर (आकाश) को अनुस्वार कल्पना करते हुए 'अ' रचिकृत वर्ण विष्णुदेवत्व के सम्मुख रखद्ध ओम प्रणवाकार स्वरुप से श्री शंकर क्ृपार्द्र हो जहाँ विष्णु के विराट में (विश्वतनु) अवन्तिनगरी हृद्गत पुण्डरीक (अष्टदल कमल) के केन्द्र में कमलदलों में भ्रमणशील 'प्राण' के द्वारा प्राणाणुओं से प्रदक्षिणा प्राप्त श्री महाकाल (नाभिदेशे महाकाल) प्रणवमूर्ति हो परावाणी अवन्ति में विराजमान प्रभु सज्जनों के अन्तकाल को निरस्त करते रहे।)



4 ऊँ महाकाल महाकाय, महाकाल जगत्पते।
...........महाकाल महायोगिन्‌ महाकाल नमोऽस्तुते॥
..................................- महाकाल स्त्रोत
(महाकाय, जगत्पति, महायोगी महाकाल को नमन)

(जो भगवान् शिव आकाश में तारक, पाताल में हाटकेश्वर एवं मृत्युलोक में महाकाल बनकर विराजते हैं, उन्हें हम नमन करते हैं।)            

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