Friday 19 October 2012

9 मृगव्याधश्च सर्पश्च निर्ऋतिश्च महायशा:।
...............अजैकपादिहिर्बुध्न्य: पिनाकी च पश्तप: ॥
...............दहनोऽथेश्वरश्चैव कपाली च महाद्युति:।
...............स्थाणुर्भवश्च भगवान् रूद्रा एकादश स्मृता:॥
.............................................................- आदिपर्व, 66/2-3

10 भव: शर्वों रूद्र: पशुपति रथोग्र सहमहां -
.............स्तथा भीमेशाना यदधतिमिधानाष्टकमिदम्॥

11 शिवेन वचस्त त्वा गिरिशाच्छावदामसि।
.................यथ न: सर्वनिज्जगदयक्ष्म सुमना असत् ॥

हे गिरीश! हम शान्ति स्तोत्रों से आपकी प्रार्थना करते हैं। आप प्रसन्न हों और यह सारा जगत प्राणिमात्र रोगहीन समृध्द एवं प्रसन्न होवे।

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